मुंबई / रमाशंकर पाण्डेय
लगभग दो महीने की कठोर पाबंदियों के बाद मुंबई के कपड़ा बाजार खुल गए हैं। बाजार शाम 4 बजे तक खोले जा रहे हैं। बाजार में धीरे-धीरे कामकाज शुरू होने लगा है। लोगों के आने जाने की सुविधा सुगम नहीं होने से बाजार में कोई खास रौनक नहीं है। देसावरी मंडियों में अभी बहुत जगह अनलॉक की प्रकिया शुरू नहीं हुई है, इससे इन बाजारों की मांग निकलने में कुछ समय लग सकता है, परंतु जहां अनलॉक की प्रकिया शुरू हो चुकी है, ऐसे कई केंद्रों से थोड़ी पूछताछ शुरू हो गई है। दूसरे यह ऑफ सीजन का समय है। ऊपर से जोरदार बारिश हो रही है, कॉटन यार्न में भारी तेजी है, कपड़ों का उत्पादन कम हो रहा है, पावरलूम श्रमिकों का आना शुरू हो गया है।
लेकिन जानकारों का कहना है कि बाजार का रुख बहुत ही सकारात्मक लग रहा है। यद्यपि बाजारों में अभी कपड़ों की कोई नई वेराइटी नहीं मिल रही है, पर पुराने स्टॉक भी बहुत अधिक नहीं हैं। रिटेलर्स की थोड़ी बहुत पूछताछ उन किस्मों में निकलने लगी है, जिनके इस ऑफ सीजन में आसानी से बिक जाने की पूरी संभावना है। भले ही स्थानीय स्तर की ग्राहकी में अभी जोर नहीं है, परंतु निर्यात बाजारों की मांग लगातार बढ़ रही है। हाल यार्न, कपड़ा, मेडअप्स और गार्मेट का निर्यात अच्छा है। कोरोना महामारी ने रोजी, रोटी, धंधों को इतना गहरा चोट पहुंचाई है कि अब लोगों में इसके प्रति जागरूकता बढ़ी है। कारोबार को पटरी पर लाने के लिए सारे प्रयास तेज किए जा रहे है।
मिल उत्पादों की मांग बढ़ रही है, विशेषकर उन मिलों के फैब्रिक्स की खपत बढ़ रही है, जो फैब्रिक्स उत्पादन के साथ गारमेण्ट के उत्पादन एवं गारमेटरों को फैब्रिक्स की आपूर्ति करती है। दरअसल पश्चिम के देशों की मांग में भारी इजाफा देखा जा रहा है। इन देशों की मांग टॉवेल, बेडशीट्स और गारमेण्ट उत्पादों की है, जिनका बाजार हिस्सा इधर कुछ समय से लगातार बढ़ता जा रहा है। ऐसे निर्यातकों के पास निर्यात के लिए मिल रहे अच्छे ऑर्डर को देखते हुए मिल कपड़ों की मांग निखर रही है। जो मिलें बड़े पैमाने पर निर्यात करती है, उनके कुल फैब्रिक्स उत्पादन का करीब 60 प्रतिशत हिस्सा निर्यात में और 40 प्रतिशत स्थानीय में था, जो अब 90 प्रतिशत निर्यात में जा रहा है।
आगे की सीजन के लिए प्रोग्रामिंग आमतौर पर जुलाई मध्य से अथवा अगस्त मध्य के बीच शुरू हो जाती है, परंतु पिछले दो सालों में कपड़ा बाजारों में कामकाज अच्छा नहीं होने के कारण उत्पादकों एवं व्यापारियों में अभी भी उलझन है। आगे की सीजन के लिए क्या चलेगा, क्या नहीं यह उलझन तो है, इसके साथ ही ग्रे कपड़ों का उत्पादन कम है, तो दूसरी ओर कॉटन यार्न के भाव में प्रति किलो 30 से 40 रू तक उछाल आ जाने से छोटे एवं मध्यम स्तर के वीवर्स परेशान हो गए हैं। यद्यपि भिवंडी में कपड़ों का उत्पादन जो पहले 20 से 25 प्रतिशत हो रहा था, उसमें थोड़ा सुधार हुआ है। अब कपड़ों का उत्पादन करीब 30 प्रतिशत की क्षमता के साथ एक ही पाली में हो रहा है।
वीवर्स की उलझनें बढऩे का एक प्रमुख कारण यह है कि जिस तेजी के साथ कॉटन यार्न के भाव बढ़ते हैं, उस अनुपात में ग्रे कपड़ों के भाव नहीं मिलते हैं। कभी कभार पोजिशन इतनी टाइट हो जाती है कि छोटे एवं मध्यम दर्जे के वीवर्स को उत्पादन जारी रखने में कठिनाई होती है। ऑफ सीजन में जहां पहले से ही कपड़ों का उत्पादन कम है, अब कॉटन यार्न के साथ सिंथेटिक यार्न के भाव बढऩे से कहीं इनकी मांग पर असर नहीं हो। यह भी सच है कि कपड़ों के भाव कुछ सुधरे हैं। कुछ ऐसी वेराइटी हैं जिनकी मांग हाल अच्छी है, जैसे कि जापान क्रेप 44'' पना का भाव जो पहले 27 रू था, वह बढ़कर अब 29 से 30 रू हो गया है। इस वैराइटी की निर्यात मांग भी अच्छी रही है।
जापान क्रेप वैराइटी 100 प्रतिशत फिलामेंट साटीन है। डॉवी वीव के कारण इसका उत्पादन कम होता है। इस कपड़े का उपयोग नाइटवीयर, चिल्डे्रनवीयर, लेडीजवीयर बनाने के अलावा निर्यात करने में किया जाता है। दुबई की ओर इसका निर्यात बहुत अच्छा होता है।
यार्न डाईड शर्टिंग 40/40, 120/80, 58'' पना का भाव 125 रू के आसपास चल रहा है। इस कपड़े का उत्पादन एयरजेट और रेपियर दोनों लूमों पर होता है। इसके ग्रे का कोई तय भाव नहीं रहा है। मांग एवं आपूर्ति के आधार पर इसका भाव बोला जाता है। कमोबेश इसी तरह की स्थिति 40/40 सूती पॉपलीन की है। इसमें साउथ एवं इचलकरंजी का माल अन्य सेंटरों की तुलना में महंगा पड़ रहा है। कपड़ों की बिक्री का अभी कोई सीजन नहीं है। बारिश के दौरान कपड़ों में कारोबार सिर्फ काम चलाऊ रहता है। अभी करीब दो से ढाई महीने इसी तरह का माहौल बाजार में रहने वाला है। कपड़ों के साथ अन्यों की मांग अगस्त के मध्य से शुरू होती है, जब त्योहारी सीजन की मांग निकलने लगती है। इसी के कारण उत्पादकों का जोर अब कपड़ों की डिजाइनिंग और उसका उत्पादन आगे की सीजन को ध्यान में रखते हुए किया जा रहा है। रिटेल ब्रांड जो बल्क में कपड़ों की खरीद कर उससे गारमेण्ट बनाकर बेचते हैं, उनकी मांग में आंशिक सुधार नजर आ रहा है, लेकिन इनकी मांग कम भाव पर होने से वीवर्स उलझन में हैं कि कपड़ों की आपूर्ति इस भाव पर करें या नहीं।
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