मौसम के बदलाव से उत्पादन प्रभावित

बालोतरा/ मौसम ने ऋतु चक्र को ही बदल दिया लगता है। कभी बरसात, कभी आंधी, कभी गर्मी और कभी शीतल सुहावनी पवन का आनंद का मिलाजुला वातावरण ने औद्योगिक उत्पादन को अस्त-व्यस्त कर दिया। यकायक बादल छा जाए और बरसात हो जाने का पता ही  नहीं चलता। इस प्रकार के मौसम में माल जिस किसी स्टेज पर होता है, माल के खराब क्षतिग्रस्त होने की संभावनाएं बढ़ जाती है। माना कि अभी पोपलीन की ग्राहकी अच्छी है, परंतु चालानी में अनेक प्रकार की सुविधाओं से गुजरना पड़ता है। 
सर्वप्रथम तो माल के तैयार होने में विलंब हो रहा है। स्टॉक में माल है पर रंगबेजी में कमी के कारण माल को डिस्पैच करने के पूर्व दिशा वरी व्यापारी को स्थानीय स्थिति से वाकिफ करना निहायत जरूरी हो गया है। व्यापारी रंगबेजी के अनुसार ही माल चाहता है। अत: उसे समझना पड़ता है कि इन रंगों में ही माल आ सकेगा, अन्यथा आपको कुछ दिनों तक इंतजार ही करना पड़ेगा। इस प्रकार व्यापारी की सहमति या असहमति के अनुसार ही माल डिस्पैच के हालात बन गए हैं। इन दिनों श्रमिकों की समस्या भी कम नहीं है। गांठ बांधने, वार लगाने व माल को ढ़ोने वालों की कमी के चलते छोटे उत्पादकों को बहुत परेशानियों से रूबरू होना पड़ता है।
बाजार कुछ इस कदर हो गया है कि रकम की आवक असंतोषजनक बन गई। रकम के न आने से होने वाली दिक्कतों को समझा जा सकता है, इस कारण उत्पादकों को मंदी आने का भय सताने लगा है। परिस्थितियों में सामंजस्य न बैठने से मंदडिय़ों का पाया भारी होता जा रहा है। हालांकि अनुभवी उत्पादकों का कहना है कि तेजी का दौर आए बिना नहीं रहेगा। यह सही है कि स्थिर बाजार में किसी को तकलीफ नहीं रहती, चाहे वह उत्पादक हो या व्यापारी। कुछ भी तेजी मंदी के इस भंवर जाल में उत्पादन व चालानी जरूर प्रभावित होती हैं। रंग बदलते मौसम में के मिजाज ने सभी को हतप्रभ जरूर कर दिया है।
पहले जो उत्पादक केवल एक ही क्वालिटी बनाते थे, अब वे अन्य क्वालिटीज को बनाने की ओर प्रवृत हो गए हैं। इससे उन्हें काम का सहारा मिल गया है। एक क्वालिटी ना चली तो दूसरी से भरपाई हो जाती है। भावों में भले ही रस्साकशी चलती है, परंतु पोपलीन की लेवाली में दम है। पेटीकोट, नाईटी, लिजीबिजी, के्रप, रेयॉन के साथ पोकेटिंग की लेवाली भी ठीक बताई जा रही है। रोटो का माल अच्छी तादाद में चालानी पर है। इतना सब कुछ होने पर भी जो ग्राहकी का ग्राफ बढऩा चाहिए था, उसका अभाव है। 
सूती वस्त्रों में पोपलीन, प्रिंट नाईटी आदि के महंगे हो जाने से कतिपय उत्पादक इसके विकल्प के लिए प्रयत्नशील हंै। नये उत्पाद गुणवत्ता के साथ निर्मित हुए तो एक नया सूत्रपात हो जाएगा, जो इस क्षैत्र के औद्योगिक विकास का प्रमुख बिंदु रहेगा। इस बात में भी दम कम नहीं है कि रिफाइनरी से संबद्ध लगने वाले औद्योगिक प्रतिष्ठानों से यह क्षैत्र औद्योगिक दृष्टि से विशेष महत्व का बने बिना नहीं रहेगा और कभी मूल रूप से पिछड़ा गिना जाने वाला यह भूभाग समृद्धि की इबारत लिखने की पहल करने का सौभाग्य प्राप्त करेगा।


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